ये जो एक नक़ली पौध निकल पड़ी है
नितंब मटकाती हुई, कान में ईयरफ़ोन घुसेड़े हुए
मेचिंग बैग, मेचिंग नेल पालिश
मेचिंग जूती, मेचिंग इयर रिंग
वालियों की
जो गोल गप्पे की हाँडी में
“भायाँ, ये मिनरल वाटर में बनाया है ना”
पूछ्ती हैं
मैं इनसे ये पूछना चाहता हूँ
कि आप धोती किस चीज से हैं?
इन्हे जब देखता हूँ तो मन में
(न जाने क्यों)
स्टार, हैश, परसेन्टेज, ब्रेकेट इत्यादि के चिन्ह
उभरने लगते हैं
इनकी विडम्बना ये है
कि
इनहें वास्तव मे कुछ नहीं आता
और
ये ऐसा दिखाती है कि इन्हें कुछ तो आता है
जो बाकी को नहीं आता।
वो ‘कुछ’ है,
“आई नो हिंदी थोड़ा थोड़ा”
बात ये है कि
“दे नो इवन ईंग्लिश थोड़ा थोड़ा”
ये काल सेंटर की पैदाइश
पूरी नक़ली हैं
खोखली
आइडेन्टिटी क्राइसिस से जूझती
जो कि कहती हैं
“आई नो हिंदी थोड़ा थोड़ा”
इनकी गुफ़्तगू भी
इन्ही की तरह नक़ली होती हैं
“आई हर्ड अबाउट दैट इन्सिडेंट,
एन्ड, आई मीन, आई वाज ईन शाक
कैसे हुआ ये सब
आई मीन, हाउ डज दैट हेप्पेन?
कैसे मरा तुम्हारा कुत्ता?
मैं तीन दिन सो नहीं पायी!!!”
(ये तीन एक्सक्लामेशन मार्क उसके चेहरे पर सच में दिखते हैं,
पर वो नक़ली होते हैं)
और कुत्ते वाली बोलती है,
“सुबुक सुबुक्… डान्ट काल हिम कुत्ता
ही वाज नोट ए कुत्ता…”
अच्छा, कुतिया होगी (मैने कहा)
“नान सेन्स! ही वाज ए डागी
डान्ट काल हिम कुत्ता…”
हाउ सैड (आफ़ दिस जेनेरेशन)
मन ही मन मैं कहता हुआ निकल गया
वर्ना इनसेन्सिटिव होने का ठप्पा लग गया होता
ये नक़ली पौध क्या खाती है?
एक चौथाई का आधा सेव
लंच में
(ओफ़ कोर्स विथ मिनरल वाटर!)
भगवान, इन्हें कोई बताए कि
बिसलेरी की बोतल मे कूलर का पानी भरने से
वो मिनरल वाटर नहीं बन जाता
पर क्या करें
इन स्टार, हैश, परसेन्टेज, ब्रेकेट को कौन समझाये!
सच्चाई ये है कि ये कोई शौक से
‘एक चौथाई का आधा सेव’ नहीं खाती!
ये उन अमीर घरों की गरीबी है
जहाँ डाईनिंग टेबल पर
शाम को इनके बाप (हर शाम को नहीं)
आधा किलो सेव लाकर रख देते हैं
और
जब वो रखा रखा सड़ जाता है
तो बेचारी माएँ
उसे बहुत मेहनत से काट कर
उसे टिफ़िन मे डाल कर कहती हैं
“बेटा सब खा जाना”
यही है उस ‘एक चौथाई का आधा सेव’ का सच
क्योकिं सड़े हुए पूरे सेव में
उतना ही बचता है अंततोगत्वा!
फ़िर ये नक़ली पौध
रिक्शा वाले ‘भैयाँ’ को बुलाती है,
“भैयाँ घर चलोगे?”
“मैडम, किसके घर? मुझे क्या पता आपका घर?
जगह का नाम बता दो तो चलें”
“ओह! मैं भी ना!!!
आट्रम लेन?”
“उधर तो जाम लगता है”
“अरे भैयाँ, आगे से ले लो, जो बनेगा दे दूँगीं”
“नहीं मैडम, मै पीछे से ले लेता हूँ,
आगे रास्ता टूटा हुआ होगा
पीछे से कोई नहीं लेता
वो सही होगा…”
रिक्शावाला अपने हरामीपन पर मुस्कुराता है
वहीं खड़ा एक नक़ली लड़का भी मुस्कुराता है
मन में कहता है, “बड़ा हरामी है ये रिक्शावाला”
उसका दोस्त कहता है, “रिक्शेवाले हरामी होते ही हैं
चलो हमें क्या…”
तुम्हें फ़र्क तब पड़ेगा
जब वो तुम्हारी बहन को भी
ऐसे ही आगे से
पीछे से और ना जाने कहाँ कहाँ से ‘लेगा’
और
फ़िर तुम ये कह नहीं पाओगे
कि
“रिक्शेवाले हरामी होते ही हैं,
चलो हमें क्या…”
अपना लिंग काट कर फ़ेंक दो
कि
फ़िर तुम्हारे जैसे नक़ली लोग
इस नपुंसकता से मर जायें
और
साथ ही साथ
इस नक़ली पौध
का बीज भी नष्ट हो जाए!
itna gusaaa bhai mere… kyu?