क्या हो रहा है
और क्यूँ हो रहा है
जो भी हो रहा है
और, जो नहीं हो रहा है
भर दम समझते है
ये सब हम समझते है
हमारे काम में जो खराबी है
और तुम्हे जो दिखती लापरवाही है
इस खराबी और लापरवाही का सबब
हम समझते हैं
भले ही तुम्हें लगता हो की
कम समझते हैं
ये जो चापलूसों की सेना है तुम्हारी
ये जो तुम ब्लूटूथ से गाने लेते हो
ये जो तुम बिना बात के खिलखिलाकर हँसते हो
उस हँसी का कारण
उस चापलूसी की गंध
और बाकिओं के मन का द्वन्द्व
हम समझते हैं
वैसे भी हमारी हंसी तुम्हे नहीं भाएगी
न ही हम तुम्हारी बातों पर बेबात मुस्कुरा पाएंगे
क्योंकि हम दिल से हँसते है
और बाकि
सोच कर
कब, कितना, किस तरह हँसें
ये समझकर हँसते हैं
हम वैसे क्यों नहीं हँसते
ये हम समझते हैं
हम जो तुम्हारे चक्कर नहीं लगाते
हम जो तुम्हे देख कर नहीं मुस्कुराते
हम जो तुम्हे रत्ती भर भी नहीं लगाते
इन सब का कारण क्या है
वो तुम भी, और हम भी
हरदम समझते हैं
भले ही तुम्हें लगता हो कि
कम समझते हैं
तुम भी जानते हो कि हम क्या हैं
हम क्या कर सकते हैं
और
तुम ये भी समझते हो
की तुम कुछ भी नहीं कर सकते
सिवाय
कुछ बेहूदा दलीलें देने के
सिवाय कुछ उलूल जुलूल बात करने के
तुम्हारा ये समझना की ये जीत हो गयी तुम्हारी
ये बहुत बड़ा भ्रम है
तुम हमें क्या समझते हो
और हम तुम्हे क्या समझते हैं
ये तुम समझते हो
लेकिन तुम्हे ये नहीं पता
कि तुम्हें हम समझते हैं
तुम्हारी बातों का कारण
तुम्हारी बेहूदा दलीलों की मजबूरी
तुम्हारे उलूल जुलूल बातों का सच
ये सब
हम समझते हैं
भले ही तुम्हे लगता हो कि
कम समझते हैं
हमें सुधार की जरूरत है
उसे सुधार की जरूरत है
इसे सुधार की जरूरत है
अरे मेरे लल्लू, मेरे सोना
किसे सुधार की जरूरत नहीं है
और किस सुधार की बातें कर रहे हो तुम
ये हम समझते हैं
हमें ये मत समझाओ की दोस्त किसे बनायें
किस से दूर रहें, किसके पास जाएँ
तुम्हारी ‘निगेटिविटी’ की परिभाषा का मापदंड
हम समझते हैं
और यही नहीं
तुम्हारे सारे मापदंडो का मापदंड
हम समझते हैं
तुम्हारा अपने निकम्मे जासूसों पर निर्भर होने का कारण
तुम्हारा आँख मूँद कर ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ समझने का कारण
तुम्हारा वही सुनने का कारण जो तुम सुनना चाहते हो
इन सभी कारणों का कारण
हम समझते है
लेकिन वो बात जो तुम नहीं समझते
वो ये है कि
तुम बहुत देर तक
ऐसी बाहियात बातों से खुद को तो समझा सकते हो
पर सामने वाले को नहीं
ये बेसिरपैर के (कु)तर्क
ये तुम्हारे ‘उम्दा’ बहाने
कहाँ से आयेंगे
जरा सोचो
जब वो कन्धा जिस पर तुमने रखी हुई है बन्दूक
थोडा सा हिल जायेगा
या किसी और ने अगर उसे हिला दिया
तो निशाना कोई और नहीं
तुम बनोगे
और ये बात तुम्हें समझना चाहिए, बखूबी
ऐसा हम समझते हैं
जो तुम समझते हो
और जो तुम नहीं समझते हो
उस समझने, न समझने का सबब भी
हम समझते हैं
भले ही तुम्हे लगता हो कि
हम थोडा कम समझते हैं
Very Good Job. Keep it up!
This is called Contemporary literature. 🙂
Great piece sir…Aap kab, kya, kyun sochte hain..dhire dhire shayad ab hum samajhte hain
bhaai aapne to bakhiya udhed kar rakh di hai.
na kahi baaton me kitna kuch kah gaye hain
ye hum samajhte hain
komal shaant sughar baaton mein
chhipi sachchai jo hai
lahron ke upar athkhelion ke neeche
pal badh raha kya tufaan hai
ye ham bhi samajhte hain
I have read a poem by Gorakh Pandey on the same lines. I liked it too much. and when I saw and heard friends from all over the place telling about their appraisal and increment in this month, Could not help myself but write this one.
chaliye aapki kaabiliyat ko salaam.
वैसे भी हमारी हंसी तुम्हे नहीं भाएगी
न ही हम तुम्हारी बातों पर बेबात मुस्कुरा पाएंगे
क्योंकि हम दिल से हँसते है
और बाकि
सोच कर
कब, कितना, किस तरह हँसें
ये समझकर हँसते हैं
हम वैसे क्यों नहीं हँसते
ये हम समझते हैं
My favorite.
Thanks Navin. This is dedicated to all of us who have ridiculous bosses!