दिल्ली में एक तेरह साल की अनाथ लड़की के साथ बलात्कार हुआ और उसे मरने के लिए रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया। दिल्ली में हो रहे बलात्कार की वारदातों में तारीख़ लिखना ग़ैरज़रूरी है क्योंकि तारीख़ हटा भी दें तो भी लगभग हर दिन की यही कहानी है। दिल्ली की सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने अपने सत्ता में आने से पहले निर्भया वाले निर्मम घटना पर शीला दीक्षित के ‘हेल्पलेस’ होने पर ट्वीट किया था कि क्या दिल्ली वालों को ऐसी असहाय मुख्यमंत्री चाहिए।
कालांतर में अरविंद केजरीवाल ने और भी ट्वीट किए। जिसमें फ़िल्म समीक्षा से लेकर ‘सोर्सेज़ से मी’ (सूत्र कहते हैं) वाली खूफिया जानकारियाँ, उलूल जुलूल दावे (जिस पर आज भी मानहानि का केस झेल रहे हैं, और कई बार चुपके से माफ़ी माँग कर रफ़ा दफ़ा करा चुके हैं), देश के नेताओं को बेहूदगी उपाधियाँ देना (प्रधानमंत्री को कोवार्ड और साइकोपाथ कहना) और फिर डिग्री माँगना आदि शामिल हैं।
इनके ट्वीट का विश्लेषण अगर आप करेंगे तो पहली बात सामने आएगी की ‘नई राजनीति’ जिसकी ये बात करते आए हैं, उसका पहला अध्याय है ट्विटर पर बैसिरपैर की बातें लिखना और फिर प्राइवेट में केस होने पर माफ़ी माँग लेना। बिना किसी पोर्टफोलियो के ये मुख्यमंत्री साहब एक भी ट्वीट ऐसा नहीं करते जिसमें पब्लिक की समस्याओं का समाधान हो। इनकी हर ट्वीट में इनका पॉलिटिकल एम्बीशन दिखता है, लेकिन उसका स्तर इतना गिरा हुआ होता है कि मज़ाक़ उड़ाने के सिवा उसका कोई और औचित्य नहीं होता।
दिल्ली में एक तरफ कई कॉलोनी में पानी की समस्या है और कई कॉलोनी में बिजली की। ये दोनों चीज़ें केजरीवाल के ही अंतर्गत हैं, ना कि सेंटर के। इन पर आप एक भी ट्वीट नहीं पढ़ेंगे की मुख्यमंत्री इस पर क्या क़दम उठा रहे हैं। इनके पास एक छोटी सी यूनियन टैरिटरी है और वो चल नहीं पा रही, क्योंकि इनका सारा ध्यान किसी भी तरह हर समस्या के लिए भाजपा को ज़िम्मेदार ठहराने पर है।
ख़ैर तात्कालिक मुद्दे पर आते हैं। इस बलात्कार पीड़िता से कल केजरीवाल जी, सोनिया जी और राहुल जी गए थे। बाकी दोनों ने क्या कहा, किसी को पता भी नहीं। हाँ, केजरीवाल जी ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए इस बलात्कार पर ये बयान दिया कि दिल्ली को अगर स्टेट बना दिया जाता तो ही कुछ संभव है। अब आप इनका निर्भया के टाइम पर दिया ट्वीट याद कीजिए। यहाँ वो अपने चुनावी वादों को, जो कि महिला सुरक्षा को लेकर काफ़ी मुखर थे कि मार्शल लगेंगे, सीसीटीवी कैमरे होंगे हर गली और नुक्कड़ पर, भुला भी देते और सिर्फ ये ही कह देते कि उनकी सरकार इस घटना को लेकर अपना काम करेगी तो भी शायद चलता।
ये दो कौड़ी की पॉलिटिकल अपॉर्चुनिज्म दिखाना कि हर आत्महत्या पर (रोहित बेमुला), हर मुस्लिम की हत्या पर (NDMC के मोइन खान, यूपी के तंजील अहमद, दादरी के अख़लाक़) एक करोड़ बाँटते हुए, हर बलात्कार पर अपनी ही सरकार के असहाय और सेंटर पर ब्लेम फेंक देना ही शायद ‘नई राजनीति’ है। दूसरे समुदाय का किसान आपकी रैली में आत्महत्या करता है आपको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। दूसरे समुदाय का एमसीडी कर्मचारी फाँसी लगाकर मर जाता है क्योंकि उसके पास उसके बच्चों की फ़ीस के पैसे नहीं थे, आप इस पर कुछ बोलते तक नहीं। दिल्ली में जो हो रहा है वो सँभलता नहीं और आप दादरी के लिए मोमबत्ती, पठानकोट शहीदों के लिए दिल्ली की जनता के पैसे, बेमुला के लिए हैदराबाद में जाकर राजनैतिक विधवा विलाप करते फिर रहे हैं।
केजरीवाल जी की नई राजनीति अब इतनी ज़्यादा प्रेडिक्टेबल हो गई है कि अगर वो अपनी जगह एक ऑटोमेटेड कॉलर ट्यून भी लगा दें कि ‘हमारे पास तो पुलिस नहीं है’, ‘हमारे हाथ मोदी जी ने बाँध रखे हैं’, ‘ये तो एमसीडी का मसला है और वहाँ भाजपा के लोग हैं’, ‘ये फ़िल्म बहुत अच्छी है, ज़रूर देखिए’, तो भी दिल्ली वासियों का काम चल जाएगा।
पुराने लोग ये नहीं करते, चाहे वो कितने भी बुरे हों। पुराने लोगों को कभी नहीं सुना कि किसी का बलात्कार हुआ हो और वो इस तरह का घिनौना बयान दे रहा हो। केजरीवाल जी दिल्ली में पानी और बिजली दे दो पहले। आपके वादे और बाक़ियों के वादे में कोई फ़र्क़ नहीं। आप भी सत्तालोलुप हैं, वो भी हैं। आपको भी जितनी जल्दी हो सके, तुरंत ज़्यादा पावर चाहिए, उन्हें भी। आपसे दिल्ली सँभल नहीं रही और पंजाब, गोवा की समस्या का समाधान देने वहाँ रैलियाँ कर रहे हैं।
आपकी बसों में कैमरा और पैनिक बटन लगवाने का काम भी आपसे कहीं पहले लग रहा है नितिन गडकरी ही करा देंगे। आप कुछ मत कीजिए, मेरा मतलब है आप जो कर रहे हैं वही करते रहिए: कुछ नहीं। आप बस अपने सपोर्टर को मैसेज लिखकर हैशटैग ट्रेंड करवाने पर लगाइए जो कि भाजपा करती है। वो आपके ख़िलाफ़ ट्रेंड कराए, आप उनके ख़िलाफ़। इससे दिल्ली और देश की सारी परेशानी दूर हो जाएगी।
और हाँ, शीला दीक्षित आपके हिसाब से असहाय भी थी लेकिन दिल्ली बेहतर थी तब। आज दिल्ली सरकार का सारा काम आपके ट्वीट में दिख जाता है। जहाँ आपको सत्तर में सड़सठ सीटें हैं वहाँ भी आपको मूलभूत मुद्दे छोड़कर मुस्लिम अपीजमेंट, वो भी दूसरे राज्यों के मुसलमानों को खींच खींच कर अपनाने, दलित अपीजमेंट करने की क्या ज़रूरत है ये किसी भी पॉलिटिकल अनालिस्ट की समझ से बाहर है।
पाँच साल काम कर लीजिए मुख्यमंत्री जी, और बलात्कार पर अपनी घिनौनी राजनीति बंद कीजिए।